दमयंती मांझी: किसी महान आदमी ने कहा है. जब मेहनत का पहिया चलता है तो जिंदगी रफ्तार पकड़ लेती है. मेहनत के दम पर इस दुनिया में कोई भी काम करना असंभव नहीं है और जो लोग मेहनत और जूनुन पर पूरा भरोसा रखते हैं. 1 दिन कायनात भी उनकी मंजिल को पूरा करवाने में उनके साथ खड़ी हो जाती है.
ऐसी ही कुछ प्रेरणा देने वाली कहानी है आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली दमयंती मांझी’ की जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम के दम पर फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया है. और वह बहुत कम उम्र में डिप्टी मेयर बनी है. आज के इस पोस्ट में हम आपको दमयंती मांझी के ही जीवन से रूबरू कराने वाले हैं.
21 वर्ष की उम्र में बनी डिप्टी मेयर :
दमयंती मांझी ने अपने कठिन परिश्रम और लोगों का विश्वास जीतकर कुछ ऐसा कर दिखाया है. जिसके बाद हर कोई इनकी तारीफ कर रहा है. बता दें, दमयंती मांझी ने पिछले दिनों बीजू जनता दल यानी बीजेडी पार्टी से मेयर का चुनाव लड़ा था और अब वह इस चुनाव में भारी भरकम बहुमत से जीत दर्ज कर चुकी हैं.
इसके बाद दमयंती मांझी और डिप्टी मेयर की कुर्सी संभालने जा रही हैं. सबसे खास बात यह है कि दमयंती मांझी के परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं है और यह आदिवासी समुदाय से आती है. इनके पास ठीक से रहने के लिए मकान भी नहीं है लेकिन कहीं ना कहीं यह दमयंती मांझी का ही परिणाम है.
जिन्होंने आम लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता बनाई और लोकप्रियता के दम पर ही आज मेयर बन चुकी हैं. बता दें, दमयंती माझी रोमन शॉ विद्यालय से बी.कॉम की पढ़ाई कर रही हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 24 मार्च 2022 को इस चुनाव के परिणाम घोषित हुए और इस चुनाव में दमयंती मांझी कटक की सबसे कम उम्र में मेयर बनने वाली पहली लड़की बन गई है.
बचपन में उठ गया पिता का साया मां ने मजदूरी करके दिलाई शिक्षा
दमयंती मांझी को कभी भी पिता की परवरिश नहीं मिली. इसके बावजूद भी इन्हें इनकी मां ने कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि उनको कोई कमी खल रही है. महज 5 वर्ष की उम्र में ही इनके पिता का देहांत हो गया था. जिसके बाद इनकी पालन-पोषण की जिम्मेदारी इनकी मां के कंधों पर थी.
इनकी मां ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और मेहनत मजदूरी करके अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाई. और अब इनके इस पद को देख कर तो लगता है. वाकई दमयंती मांझी और इनकी मां की मेहनत सफल हो चुकी है.
राजनीति नहीं है पसंद : दमयंती मांझी के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने यह मेयर का चुनाव जिंदगी में पहली बार लड़ा था इससे पहले ना तो इन्होंने कोई चुनाव लड़ा और ना ही कभी छात्र राजनीति में सक्रिय रही थी. इसके बावजूद भी इन्होंने पार्टी से चुनाव लड़ा और इसकी सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनका राजनीति में कोई इंटरेस्ट नहीं था.
लेकिन यह अपने क्षेत्र की समस्याओं से भली भांति परिचित थी और यही गुण इनका पार्टी को भा गया और उन्होंने इनको टिकट दे दिया और बस फिर क्या था. चुनाव जीत कर इन्होंने वह कारनामा कर दिया. जो एक आदिवासी समुदाय की लड़की शायद सोच भी नहीं सकती.