रतन टाटा का नाम देश के अरबपतियों की सूची में शामिल किया जाता है. रतन टाटा के पास जितना पैसा मौजूद है. शायद उससे कहीं ज्यादा इनके पास सादगी मौजूद है. भले ही यह देश के अरबपति हैं लेकिन अपने नेकदिल इंसान होने की वजह से अक्सर लोगों के चहेते बने रहते हैं.
यूं तो इस दौर में हर किसी के लिए चहेता बनना काफी मुश्किल है. लेकिन रतन टाटा (Ratan Tata) का नाम उन शख्सियतों की लिस्ट में शामिल है. जिन्हें सब लोग पसंद करते हैं और उनकी सादगी के दीवाने हैं. आज के इस पोस्ट में भी हम आपको रतन टाटा की सादगी से रूबरू कराने वाले हैं और इस सादगी का किस्सा संजीव कौल (Sanjiv Kaul) ने अपने लिंकडइन अकाउंट पर शेयर किया है.
रतन टाटा की सादगी का किस्सा : यूं तो हमने अरबपति रतन टाटा के सादगी के किस्से कई बार सुने हैं. इस बार भी एक शख्स ने इनकी सादगी का किस्सा बताया है और यह शख्स हैं. जानी मानी कंपनी ChrysCapital में पार्टनर संजीव कौल जिन्होंने रतन टाटा की सादगी का किस्सा अपने लिंकडइन अकाउंट पर लोगों के साथ साझा किया है.
इसके बाद तो लोगों के दिलों में रतन टाटा के प्रति सम्मान और बढ़ गया है. उन्होंने बताया कि एक बार वह काफी परिस्थितियों में थे और उस दौरान नेकदिल रतन टाटा ने उनकी मदद की थी और उनकी कंपनी के लिए फंड देने का काम किया था.
पहली बार में ही रतन टाटा की सादगी से प्रभावित हो गए संजीव कॉल : संजीव कौल ने इस किस्से के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि एक बार वह मुंबई अपनी कंपनी के लिए फंड जुटाने के लिए गए थे और इसके लिए उन्होंने खूब मेहनत की थी, लेकिन मुंबई में उन्हें किसी ने भी फंड नहीं दिया.
इसके बाद वह एयरोप्लेन से वापस लौट रहे थे और बैठे हुए अपने द्वारा बनाई गई प्रजेंटेशन पर नजरें गड़ाए हुए थे और सोच रहे थे कि आखिर उनसे गलती कहां हुई, जिसकी वजह से उन्हें फंड नहीं मिला. लेकिन अचानक प्लेन में शांति छा गई और जब उन्होंने नजरें उठाकर देखा तो सामने अरबपति रतन टाटा थे.
और कुछ ही पलों में रतन टाटा संजीव कॉल के बगल में बैठे हुए थे. उसे देख कर एक बार तो संजीव को खुद पर यकीन नहीं हुआ. लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि यह सच है लेकिन संजीव रतन टाटा से खुद बोलने की भी इच्छा नहीं जुटा पा रहे थे.
ऐसे हुई दोनों में बातचीत : बता दें, यह पूरा मामला साल 2004 का है. संजीव कौल ने कहा कि वह रतन टाटा से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे लेकिन उन्होंने सामने रखा जूस का गिलास खुद की टाई गिरा लिया. जिसके बाद खुद रतन टाटा ने उनसे कहा कि कि इसे साफ कर लीजिए और इसमें रतन टाटा ने संजीव की मदद की थी.
इसके बाद तो संजीव के लिए दरवाजे खुल गए और उन्होंने सारी बात रतन टाटा को बता डाली. संजीव ने बताया कि उनको फंडिंग की जरूरत है और वह एक फार्मास्यूटिकल कंपनी खोलना चाहते हैं, लेकिन वह अब इसके लिए फंड नहीं जुटा पा रहे हैं और इसके लिए वह मुंबई आए थे लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी है.
टाटा ग्रुप से मिल गई फंडिंग : संजीव कौल ने इस किस्से को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इसे सुनकर रतन टाटा थोड़ी देर चुप रहे और उन्होंने कहा कि आपको हमारा ग्रुप फंडिंग देगा. इसके बाद रतन टाटा ने उनसे कहा कि आप अपना नंबर दीजिए और हमारी ग्रुप का मैनेजर आपको शाम को कॉल करेगा और कॉल पर आपको इस मामले में इंफॉर्मेशन देगा.
और जब 9 बजे शाम को संजीव के पास कॉल आई, तो इनके पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि इनको टाटा ग्रुप के द्वारा फंड देने की पेशकश की जा चुकी थी. यह पूरी घटना संजीव के लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं थी इसके बाद उन्होंने वैज्ञानिकों से बात की और फार्मा क्यूटिकल कंपनी की स्थापना कर दी और इसका पूरा श्रेय संजीव कौल रतन टाटा को देते हैं.