Arun Krishnamurti: जल ही जीवन है वाकई जल हमारे लिए कितना जरूरी है. यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है लेकिन यह जानते हुए भी कई बार हम पानी को वेस्ट करते हैं. हमें जितने पानी का इस्तेमाल करना होता है. उससे कहीं ज्यादा हम पानी को बहाते हैं और रिसर्च बताती है कि आगे पानी की कितनी किल्लत होने वाली है.
लेकिन इसी को देखते हुए एक ऐसा भी शख्स है. जो लगातार पानी को बचाने और साफ करने में लगा हुआ है और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस शख्स ने यह काम गूगल की नौकरी को छोड़ कर शुरू किया था. आइए जानते हैं इसी शख्स के बारे में.
कहानी पर्यावरणविद् अरुण कृष्णमूर्ति की
अरुण कृष्णमूर्ति एक ऐसा नाम है. जिन्होंने पानी की समस्या को देखते हुए सालों पहले एक छोटे से स्तर पर पानी को बचाने और साफ करने का फैसला किया था. और उनका यह फैसला आज बड़े स्तर पर काम कर रहा है लेकिन उस दौर में उनके लिए यह काफी मुश्किल था.
साल 2007 में काम की शुरुआत करने वाले अरुण अभी तक 14 राज्यों में पानी के करीब 93 स्रोतों को बहाल कर चुके हैं. इसमें 39 झील और 48 तालाब शामिल हैं. साल 2007 में अरुण कृष्णमूर्ति ने पानी के संरक्षण के लिए इस काम की शुरुआत की थी और इस दौरान उन्होंने एक संस्था भी बनाई थी.
जो संस्था फिलहाल एक बड़े स्तर पर काम कर रही है. इस संस्था का मकसद है कि जो पानी के स्रोत बंद हो चुके हैं. उन स्रोतों को फिर से खोलना और गंदे पानी को साफ करना. 32 वर्ष के अरुण कृष्णमूर्ति Arun Krishnamurti के इस काम की तारीफ अब हर कोई करता है.
पानी संरक्षण के लिए गूगल की नौकरी को छोड़ा
गूगल कितनी बड़ी कंपनी है ये बताने की जरूरत नहीं है. इस कंपनी में काम करना हर किसी का सपना होता है. लेकिन अरुण कृष्णमूर्ति वह शख्स हैं. जिन्होंने इस काम को करने के लिए गूगल की नौकरी को छोड़ दिया था. अरुण कृष्णमूर्ति बताते हैं कि उनके पास ऑप्शन था कि वह गूगल कंपनी में आरामदायक नौकरी कर सकते थे
लेकिन पानी संरक्षण के प्रति उनका लगाव इस कदर था कि उन्होने इस काम के लिए नौकरी को छोड़ना उचित समझा और नौकरी छोड़ दी थी.
उन्होंने कहा जब मैंने गूगल की नौकरी छोड़ी थी. उस समय परिवार वालों ने तो मुझसे बहुत सारी बातें कही थी और उस दौरान मुझे भी अच्छा नहीं लगा था लेकिन मेरा पानी और तालाबों के प्रति लगाव ही मुझे इस काम की ओर खींच लाया है.
सरकारों के साथ मिलकर करते हैं काम
अरुण बताते हैं कि शुरुआती दौर में उनको भी उम्मीद नहीं थी कि उनके काम को लोग प्यार देंगे, इनके मुताबिक की एक केंद्र और राज्य सरकार के साथ मिलकर ये इस काम को करते हैं. यूं तो इन्हें सरकार की ओर से कोई धन नहीं मिलता है.
लेकिन अरुण के मुताबिक सिर्फ परमिशन के लिए उन्हें सरकार पर ही निर्भर रहना पड़ता है. और सरकार परमिशन दे देती है तो इस काम को वह अंजाम देते हैं.