कहते हैं सफलता धैर्य और लगन से मिलती है और इस बात को सही साबित कर दिखाया है भारत का वह करोड़पति नाई जो पेशे से तो बाल काटते हैं लेकिन बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज़ और ऑडी जैसी लगभग 400 से भी ज्यादा लग्जरी गाड़ियां इन के गैराज में पड़ी हैं. आपने अक्सर फुटपाथ पर,पेड़ के नीचे या नदी के किनारे नाई को बाल काटते हुए जरूर देखा होगा. यह नाई चिलचिलाती धूप में अपने पेट के लिए दिन रात मेहनत करते है लेकिन क्या आपने कभी करोड़पति नाई को देखा है.
जिसके गैराज में मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू औरऑडी जैसी 400 से भी ज्यादा लग्जरी गाड़ी हैं. आज के इस लेख में हम आपको उसी करोड़पति नाई से मिलवाने वाले हैं. जिसकी चर्चा विदेशों में भी होती हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं रमेश बाबू कि जो पेशे से एक नई हैं और आज भी 5 घंटे तक लोगों के बाल काटते हैं लेकिन पैसों के मामले में बड़े बड़े बिजनेसमैन इनके आगे झुकते हैं.
कौन है रमेश बाबू ? : रमेश बाबू के पिता का नाम पी. गोपाल है जो पेशे से एक नाई थे और बेंगलुरु में छोटा सा अपना सैलून चलाते थे. हालांकि, जब रमेश बाबू मात्र 7 साल के थे तभी इनके पिता इस दुनिया से अलविदा कह गए. जिसके बाद से रमेश के पूरे परिवार का बोझ इनके सर पर आ गया.
रमेश बाबू के पिता के मृत्यु के बाद इनकी मां ने उस दुकान को किराए पर दे दिया जिससे रोज इन्हें 5 रुपया किराया मिलता था. रमेश बाबू अपने मां का हाथ बटाने के लिए छोटे-मोटे काम करने लगे और फिर बाद में रमेश बाबू ने 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद अपनी पढ़ाई छोड़कर पिता की पुरानी दुकान को फिर से चलाने का फैसला किया
और इन्होंने फिर से उस दुकान की शुरूआत की और उस दुकान का नाम Inner Space रखा जो रमेश बाबू के स्कूल के पास वाले शॉपिंग कंपलेक्स में था.देखते ही देखते रमेश बाबू के लगन और मेहनत से उनकी यह दुकान चल पड़ी. हालांकि, रमेश बाबू के दिमाग में अभी भी कुछ चल रहा था.
रमेश बाबू कुछ बड़ा करना चाहते थे जिसके बाद उन्होंने कार खरीदने का फैसला किया और अपने अंकल की मदद से साल 1993 में एक मारुति की बैन खरीद ली. हालांकि, रमेश बाबू इस गाड़ी को नहीं चला पाते थे. क्योंकि, वह दिनभर सैलून में ही व्यस्त रहते थे जिसके बाद उनकी गाड़ी पड़े पड़े खराब होने लगी
फिर रमेश बाबू ने इस गाड़ी को किराए पर देने के लिए सोचा और तभी से रमेश बाबू की किस्मत बदल गई. दरअसल, रमेश बाबू को Intel कंपनी से सबसे पहला बिजनेस मिला और रमेश बाबू को इस समय समझ में आ गया था कि ऑटोमोबाईल रेन्टल में बहुत ज्यादा पैसा है.
इसके बाद रमेश बाबू ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और साल 2004 में रमेश बाबू ने लक्ज़री कार रेन्टल और सेल्फ़-ड्राइव बिज़नेस शुरू कर दिया. रमेश बाबू ने रमेश टूर्स एंड ट्रैवल्स की भी स्थापना की और आज इसके बदौलत रमेश बाबू करोड़ों रुपए कमाते हैं. यह अपना पुराना पेशा आज भी नहीं भूलें हैं आज भी यह 5 घंटे तक अपने कस्टमर के बाल काटते हैं.