Amul: अमूल एक ऐसी दूध कंपनी है. जिसका दूध हर किसी ने इस्तेमाल किया होगा. इस्तेमाल नहीं किया होगा तो नाम जरूर ही सुना होगा. पिछले कई दशकों से यह मिल्क कंपनी लोगों को अपनी सेवा देती आ रही है. चाहे दूध हो या फिर हो पनीर या मक्खन की बात हो हर चीज अमूल की ही हमें अपने किचन में दिखाई देती है.
वाकई अमूल ने भारत में जो मुकाम हासिल किया है. वह उसकी कहानी को प्रेरणा देने वाली कहानी बनाता है. आज के इस पोस्ट में हम आपको अमूल कंपनी के फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी से रूबरू कराने वाले हैं. कि आखिर अमूल कंपनी इतनी बड़ी बनी कैसे. तो चलिए जानते हैं इसकी कहानी के बारे में.
साल 1946 में हुई थी शुरुआत :
साल 1946 में अमूल यानी आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड की शुरुआत की गई थी और इसकी शुरुआत करने वाले शख्स थे. स्वतंत्रता सेनानी त्रिभुवनदास पटेल. उस दौर में भारतीय किसानों के साथ काफी ज्यादती होती थी उनसे सस्ते दामों में दूध खरीदा जाता था और फिर उसे काफी महंगी कीमत में बेचा जाता था.
इसी परेशानी को देखते हुए त्रिभुवनदास पटेल ने सरदार पटेल से मुलाकात की थी. इसके बाद जायजा लेने के लिए मोरारजी देसाई को भेजा गया. उसके बाद 14 दिसंबर 1946 को Amul की शुरुआत हुई. इसकी शुरुआत उस समय अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर आणंद शहर में की गई थी.
शुरुआत में बेहद कम था उत्पादन :
शुरुआती दौर अमूल कंपनी के लिए बहुत ही मुश्किलों भरा था. इस समय इस कंपनी के पास बेहद ही कम उत्पादन था इसके साथ ही आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी. इसी को देखते हुए साल 1949 में त्रिभुवनदास भाई पटेल ने वर्गीज कुरियन से मुलाकात की थी इसके बाद इन दोनों ने इस कंपनी के पैर जमाने शुरू किए.
बता दें, वर्गिस कुरियन की सलाह पर ही इस कंपनी का नाम अमूल रखा गया था. जहां कुछ कर्मचारियों ने इसका नाम अमूल्य सुझाया था. इसका मतलब होता है अनमोल. बाद में इसे बदलकर अमूल कर दिया गया. समय के साथ इसका उत्पादन भी बढ़ने लगा था. इसके बाद साल 1955 आया. इस साल सबसे पहले वर्गिस कुरियन ने भैंस के दूध से पाउडर बनाने का काम किया था.
गुजरात से निकल कर पूरे देश में रखे कदम :
कुछ वर्षों में ही अमूल कंपनी गुजरात में काफी पॉपुलर हो गई थी और उसके पास ठीक-ठाक दूध का उत्पादन भी होने लगा था लेकिन वर्गीज कुरियन और त्रिभुवन पटेल अब इस कंपनी की जडे पूरे भारत में फैलाना चाहते थे. इस काम को करने में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने वर्गीज कुरियन और त्रिभुवनदास पटेल का काफी साथ दिया था.
इसी दौर मै 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की गई. जिसका अध्यक्ष डॉ0 वर्गीज कुरियन को बनाया गया था. इसके बाद भारत की उत्पादक लिमिट बढ़ाने की जिम्मेदारी वर्गिस कुरियन के कंधों पर थी, इसके लिए उन्होंने वर्ल्ड बैंक से कर्जा लेने के लिए भी बातचीत की थी
लेकिन कुछ समय तक वर्ल्ड बैंक ने कर्जा नहीं दिया तो कंपनी के लिए यह बहुत खेद वाली बात थी. लेकिन कुछ साल बाद वर्ल्ड बैंक ने बिना शर्त के ही अमूल कंपनी को कर्जा दे दिया था. और आज इस यात्रा को 76 वर्ष हो चुके हैं. कारवां लगातार आगे बढ़ रहा है.